नंदी को न्याय ही नहीं बचे हुए बेसहारा बेलों को भी बचाना होगा | Jhalko Bikaner

 नंदी को न्याय ही नहीं बचे हुए बेसहारा बेलों को भी बचाना होगा | Jhalko Bikaner

नंदी को न्याय ही नहीं बचे हुए बेसहारा बेलों को भी बचाना होगा | Jhalko Bikaner


तीसरी आंख, जय खीचड़।

आरडी 860 (IGNP) पर पिछले एक सप्ताह के भीतर एक के बाद एक जो घटनाएं घटित हुई है वो इंसानों में घटते प्रेम और बढते लालच का परिणाम है। भौतिकी चकाचौंध में खोये लोगों में संवेदनहीनता व्यापक तौर पर घर कर रही है। जिस तरह से 15 फरवरी की सुबह बारुद के गोले को चबाने से क्षत-विक्षत जबड़े के साथ आरडी 860 के पास सांड मिला, देखने वाले सिहर उठे। देखते ही देखते क्षेत्र के लोग इक्कठे हो गए। सांड को गोशाला पहुंचाया गया और सड़क जाम कर व बाजार बंद कर घटना का विरोध जताया गया। पुलिस प्रशासन ने संज्ञान लिया लेकिन आरोपियों को पकड़ने में विफल रही। घटना के तीन दिन बाद मुखबिर की सूचना पर आरोपियों की गिरफ्तारी होती हैं लेकिन कागज़ी कार्यवाही के नाम प्रेस नोट जारी कर सफलता के नाम पर वाहवाही लुटी जाती है। आज 19 फरवरी को उसी जगह दूसरी विभत्स घटना का होना इस बात को पुख्ता करती है कि पुलिस प्रशासन द्वारा आरोपियों से पूछताछ और इन घटनाओं को रोकने को लेकर कोई प्रयास नहीं किए।

आज सुबह उसी जगह पर रखे बारुद के गोले 'गुड़ लपेटी' खाने से दो सांडों (नंदी) की दुखदायक मौत हो गई। आज उन सांडों के साथ साथ मानवता भी मर गई। सांड और मानवता जिंदा थी तो केवल शोशल मीडिया पर वायरल होते फोटोज़ में! पुलिस प्रशासन भी मौके पर पहुंची मगर होने को क्या बचा था। 

हालांकि मामला प्रथम दृष्टया खेतों में फसल बर्बादी रोकने हेतु सूअरों को मारने का लग रहा है लेकिन बारुद के गोलों की चपेट में सांड आ गए जिससे उनकी दर्दनाक मौत हो गई।

पुर्व में जिस मुखबिर ने आरोपियों का खुलासा किया पुछताछ उससे भी होने चाहिए क्योंकि एक विडियो में घटना के संबंध सूचना देने के साथ आरोपियों द्वारा उन्हें मांस सप्लाई हेतु फोन करना कबुल करता है। तो क्या इन बेजुबान जीवों को मांस बेचने हेतु मारा जाता है। अगर ऐसा होता है तो आरोपियों के साथ ही  किन्हें मांस सप्लाई किया जाता है और कौन कौन इसमें भागीदार है इसका पता लगाकर उन्हें गिरफ्तार करना चाहिए।

विगत कुछ समय से पूर्व मंत्री देवी सिंह भाटी गोवंश के संरक्षण हेतु गोचर बचाने के लिए सरह नथनिया (बीकानेर) पर धरना दे रहे हैं कहीं यह उनको जवाब तो नहीं है यह भी अनुसंधान का विषय है।

विगत कुछ वर्षों से शोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव से विघटन का बीजारोपण हुआ है। इसका असर इस घटना में ही देखने को मिल रहा है। हालांकि इस क्षेत्र में हर घर गोसेवक है यह बताने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन घटना को लेकर गोभक्त के नाम पर नाम चमकाने वाले भी पीछे नहीं है, यह सोचनीय विषय है। बॉर्डर से सटे इस इलाके में थार के वाशिंदों के लिए पशुपालन जीविकोपार्जन का प्रमुख साधन रहा है। यहां हिन्दूओं से ज्यादा मुसलमानों के यहां गाय देखने को मिल जाती है। जहां हिन्दुओं में गाय को मां का दर्जा प्राप्त है तो वहीं कुरान शरीफ में गाय को चौपायों की सरदार और गाय के दूध-घी शिफा (दवा) बताया गया है। यही कारण है कि मुस्लिम में हिन्दूओं से ज्यादा गाय को महत्व दिया जाता रहा है। आज भी पश्चिम राजस्थान में अच्छी नश्ल की गाय लेनी हो तो हमें मुश्लिम भाइयों के पास जाना पड़ता है।

किसी विघटनकारी शक्तियों द्वारा सूअर के शिकार से लेकर गो हत्या को अंज़ाम देकर धार्मिक उन्माद फैलान का प्रयास तो नहीं है। खैर इसका पटाक्षेप तो गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ व अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी पर ही होगा लेकिन जो भी हो रहा है वह गलत हो रहा है। 


घटना की पुनरावृत्ति के बाद राजनीतिक लोग भी आहत हुए और अब घटना स्थल पर इस अमानवीय कृत्य के विरुद्ध अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठे हुए हैं। इनके साथ सैंकड़ों की तादाद में लोग मृत्यु को प्राप्त नंदी को न्याय दिलाने बैठे हैं। नंदी को न्याय ही नहीं बचे हुए बेसहारा बेलों को भी बचाना होगा। संभवतः यह सत्याग्रह न्याय के साथ यहां के सैंकड़ों आवारा पशुओं को चारा-पानी व्यवस्था कर उनके जीवन को आधार प्रदान करेगा।

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