राष्ट्रीय खेल दिवस 2022 : हॉकी का जादूगर ‘मेजर ध्यानचन्द सिंह’
- अजय पाल सिंह शेखावत
झलको न्यूज़, बीकानेर।
हॉकी यानि ‘ध्यानचन्द’ हॉकी का नाम सुनते ही जेहन में ध्यानचन्द की छवि सहज उभर जाती है फुटबाल में पेले और क्रिकेट में जो स्थान ब्रेडमेन का है, वही स्थान हॉकी में ध्यानचन्द का है। उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय हॉकी मैचों में 400 से अधिक गोल किए हैं। उनकी कप्तानी में भारतीय टीम लगातार 1928, 1932 1936 में ओलम्पिक गोल्ड मैडल जीतने में कामयाब हुई। उन्हें ‘हॉकी का जादूगर’ कहा जाता है। सारा विश्व उनके नाम का कायल रहा है।
मेजर ध्यानचन्द्र सिंह का जन्म 29 अगस्त, 1905 को प्रयाग ( अब इलाहाबाद) उत्तरप्रदेश में हुआ। 1922 में प्राथमिक शिक्षा के बाद सेना के पंजाब रेजीमेंट के में बतौर सिपाही भर्ती हुए।
1927 में लंदन फॉकस्टोन फेस्टिवल में उन्होंने अंग्रेजी हॉकी टीम के खिलाफ 10 मैचों में 72 में से 36 गोल किए। 1928 में एम्सडैम, नीदरलैण्ड में समर ओलम्पिक में सेंटर फारवर्ड पर खेलते हुए उन्होंने तीन में से दो गोल दागे। भारत ने यह मैच 3-0 से जीतकर स्वर्ण पदक हासिल किया।
1932 में लॉस एंजेल्स समर ओलंपिक में तो खेल की पराकाष्ठा थी कि भारत ने अमेरिकी टीम को 24-1 से धूल चटाकर स्वर्ण पदक जीता इस वर्ष ध्यानचन्द ने 338 में से 133 गोल लगाए।
1936 में बर्लिन समर ओलंपिक में फाइनल मैच के पहले हुए एक दोस्ताना मैच में जर्मनी हो हराया। पहले हाफ तक 1-0 से आगे चल रही भारतीय टीम ने दूसरे हाफ में सात गोल दाग दिए। मैच देख रहे हिटलर अपनी टीम की शर्मनाक हार से बौखलाकर बीच में ही मैदान छोड़कर चले गए। 1948 में 42 वर्षों तक खेलने के बाद ध्यानचन्द ने खेल से संन्यास ले लिया।
मेजर ध्यानचन्द्र ने हॉकी के जरिये देश का आत्मगौरव बढ़ाया है। भारतीय जनमानस में हॉकी के पर्याय के रूप में आज भी उनका नाम रचा-बसा है। भारत सरकार ने उनके सम्मान के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी है। उनका जन्म दिवस भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। दिल्ली का स्टेडियम उनके नाम पर ‘ध्यानचन्द स्टेडियम' के नाम से प्रसिद्ध है। उनकी याद में सरकार ने ध्यानचन्द पुरस्कार रखा है और डाक टिकट भी जारी किया है।
भारत के अलावा विश्व के अनेक दिग्गजों ने भी ध्यानचन्द्र की प्रतिभा का लोहा माना है। क्रिकेट महानायक सर डॉन ब्रेडमेन के एक के संपादक ने ध्यानचंद की उत्तम खेल कला के बारे में एक टिप्पणी की है- “कलाई का घुमाव आँखों देखी एक झलक, एक तेज मोड़ और फिर ध्यानचन्द का जोरदार गोल” वियना में एक कलाकार ने अपनी पेंटिंग में ध्यानचन्द को आठ भुजाओं वाला बनाया। ध्यानचन्द के खेल से प्रभावित हिटलर ने उन्हें जर्मनी में बसने का न्यौता दिया देशभक्ति से लबरेज ध्यानचन्द ने उनके इस प्रस्ताव को सविनम्र ठुकरा दिया।
युवा पीढ़ी के लिए ध्यानचन्द एक प्रेरणास्रोत हैं, ध्यानचन्द आज के हॉकी खिलाड़ियों के आदर्श हैं। ध्यानचन्द को 1956 में भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया गया था एवं उनके सम्मान में खेल जगत में ध्यानचन्द पुरस्कार दिया जाता है।
मैजर ध्यानचन्द पुरस्कार
ध्यानचन्द पुरस्कार खेलकूद में जीवनभर, आजीवन उपलब्धि के लिए 2002 में शुरू किया गया सर्वोच्च पुरस्कार है, हर साल ज्यादा से ज्यादा तीन खिलाड़ियों को इस पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है।
ध्यानचंद ऐसे ही नहीं कहलाए हॉकी के जादूगर:
किसी भी खिलाड़ी की महानता को नापने का सबसे बड़ा पैमाना उससे जुड़ी दंत कथाएँ होती है। इसमें ध्यानचन्द सदैव शीर्ष पर रहे- हॉलैण्ड चित्र में लोगों ने उनकी हॉकी स्टिक तुड़वाकर देखी कि कहीं उसमें चुंबक तो नहीं लगा।
जापान के लोगों को अंदेशा था कि उन्होंने अपनी स्टिक में गोंद लगा रखी है 1936 के बर्लिन ओलंपिक में उनके साथ खेले और बाद में पाकिस्तान के कप्तान बने आई.एन. एस. द्वारा वर्ल्ड हॉकी मैगजीन के एक अंक में लिखा था,
ध्यानचन्द के पास कभी भी तेज गति नहीं थी बल्कि वो धीमा ही दौड़ते थे, लेकिन उनके पास गैप पहचानने की गजब क्षमता थी। लोग उनकी मजबूत कलाइयों और ड्रिब्लिंग के कायल थे लेकिन उनकी असली प्रतिभा उनके दिमाग में थी, वो उस ढंग से हॉकी के मैदान को देख सकते थे जैसे शतरंज का खिलाड़ी चैस बोर्ड को देखता है उनको बिना देखे ही पता होता था कि मैदान के किस हिस्से में उनकी टीम के खिलाड़ी और प्रतिद्वंद्वी मूव कर रहे हैं।
राष्ट्रीय खेल दिवस पर इस लेख का मेरा उद्देश्य हॉकी के जादूगर ध्यानचन्द को श्रद्धांजलि देना है एवं युवा खिलाड़ियों के लिए एक संदेश है कि वे इस महान खिलाड़ी के जीवन से प्रेरणा लें एवं अपने लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित कर सफलता प्राप्त करें।
कोई भी खेल आप खेलते हैं उस खेल की बारीकियों की जानकारी और उस खेल के प्रति सच्ची श्रद्धा एवं ध्यान केन्द्रण ही सफलता प्रदान कर सकती है।
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