बीकानेर का राठौड़ वंश : राव बीका, राव जैतसी, राव कल्याणमल, महाराजा रायसिंह, महाराजा कर्णसिंह, महाराजा अनूपसिंह

 बीकानेर का राठौड़ वंश : राव बीका, राव जैतसी, राव कल्याणमल, महाराजा रायसिंह, महाराजा कर्णसिंह, महाराजा अनूपसिंह, सूरतसिंह














 राव बीका (1465-1504 ई.) :


राव जोधा के पुत्र राव बीका ने 1465 ई. में लोकदेवी करणी माता के वरदान से जांगल प्रदेश जीतकर बीकानेर के राठौड़ राजवंश की स्थापना की। तब से करणी माता ही बीकानेर राजवंश की कुलदेवी है।

बीकानेर की स्थापना: राव जोधा ने 1488 ई. इन्होंने बीकानेर शहर की स्थापना कर उसे अपनी राजधानी बनाया।


राव जैतसी (1526-1542 ई.):


बीकानेर राज्य का प्रतापी शासक एवं राब लूणकरण का पुत्र जिसने 1534 ई. में बाबर के पुत्र व लाहौर के शासक कामरान को हराया था। इस युद्ध का विस्तृत वर्णन वीटू सूजा कृत 'राव जैतसी से छंद' में मिलता है। राव जैवसी की राव मालदेव के साथ 1541-42 में हुए युद्ध में मृत्यु हुई एवं बीकानेर पर मालदेव का अधिकार हो गया।


राव कल्याणमल (1544-1574 ई.) :


राव कल्याणमल, राव जैतसी के पुत्र थे। गिरिसुमेल के युद्ध में रात्र कल्याणमल ने शेरशाह सूरी की सहायता की थी। इस युद्ध के बाद शेरशाह ने बीकानेर राज्य का शासन राव कल्याणमल को सौंपा।

बीकानेर के पहले शासक जिन्होंने 1570 ई. के अकबर के नागौर दरबार में अकबर की अधीनता स्वीकार की तथा अपने छोटे पुत्र पृथ्वीराज को जो उच्च कोटि का कवि और विष्णु भक्त था, अकबर की सेवा में भेजा। इन्हीं पृथ्वीराज ने 'वेलि किसन रूक्मणी री' की रचना की।


महाराजा रायसिंह (1574-1612 ई.) :


महाराजा रायसिंह का जन्म: 20 जुलाई, 1541 को हुआ। इनके पिता ‌राव कल्याणमल थे।

नागौर दरबार के बाद 1572 ई. में अकबर ने इन्हें जोधपुर का प्रशासक नियुक्त किया। 1574 ई. में बीकानेर के शासक बने। इन्होंने महाराजा की पदवी धारण की।

मुगलों के साथ घनिष्ठ संबंध हिन्दू नरेशों में जयपुर(1562 से) के बाद बीकानेर से ही अकबर के अच्छे संबंध कायम हुए थे। 1594 ई. में मंत्री कर्मचंद की देखरेख में बीकानेर किले (जूनागढ़) का निर्माण कराया जिसमें 'रायसिंह प्रशस्ति' उत्कीर्ण करवाई।

 महाराजा रायसिंह को मुंशी देवीप्रसाद ने राजपूताने का कर्ण की उपमा दी।

'महाराजा रायसिंह ने रायसिंह महोत्सव' व 'ज्योतिष रत्नमाला' की भाषा टीका नामक‌ रचनाएं लिखी।' कर्मचन्द्रवंशो कीर्तनकं काव्यं' : इस ग्रंथ में महाराजा रायसिंह को 'राजेन्द्र' कहा गया है तथा लिखा है कि वह विजित शत्रुओं के साथ भी बड़े सम्मान का व्यवहार करते थे। महाराजा रायसिंह की मृत्यु सन् 1612 ई. में बुरहानपुर में हुई।


महाराजा कर्णसिंह (1631-1669 ई.) :


पिता सूरसिंह के देहावसान के बाद ये सन् 1631 में बीकानेर के सिंहासन पर बैठे। ये औरंगजेब के विशेष कृपापात्र रहे। मुगल शासक औरंगजेब ने इन्हें 'जांगलधर बादशाह' की उपाधि दी। इनके समय गंगानंद मैथिली ने साहित्य कल्पद्रुम व कर्णभूषण नामक ग्रंथों की रचना की।


महाराजा अनूपसिंह (1669-1698 ई.):

मराठों के विरुद्ध कार्यवाही से खुश होकर इन्हें बादशाह औरंगजेब द्वारा 'महाराजा' एवं 'माहामरातिब' का खिताब दिया गया। मणिराम, अनंतभट्ट, भावभट्ट इनके दरबारी कवि थे। 'अनूप विवेक' 'काम प्रबोध' 'अनूपोदय' आदि संस्कृत ग्रंथ महाराजा अनूपसिंह ने स्वयं ने लिखे थे। इन्होंने दुर्लभ ग्रंथ एकत्रित कर बीकानेर अनूप पुस्तकालय की स्थापना की।


महाराजा सूरतसिंह ने मार्च 1818 ई. में ईस्ट इंडिया कम्पनी से संधि की।

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